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दादी प्रकाशमणि का प्रवचन पत्र

दादी प्रकाशमणी जी प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की 1969 से लेकर अगस्त 2007 तक मुख्य प्रसाशिका रही। यह उनका विशेष नवरात्री के अवसर पर लिखाया गया 1999 का एक original पत्र है। जरूर पढ़े और प्रेरणा ले, और अन्य बी.के. भाई बहनो को SHARE करे।


✱सन्दर्भ:- ज्ञान सरिता भाग 6


Navratri 9 forms

नवरात्रि-चैतन्य शिव शक्तियों का यादगार


ड्रामा अनुसार आज का दिन विशेष हम कल्प पहले वाली शक्तियों के आह्वान का दिन है। सर्वशक्तिवान बाप ने गुप्त रूप में हम शक्तियों को शक्ति दी है। हम सब भक्तों की रक्षा करने वाली असुर संहारिनी, ‘शिव शक्तियाँ’ हैं। शिव-शक्ति अर्थात्‌ शिव परमात्मा से प्राप्त हुई शक्तियाँ जिनसे हम असुर संहारिनी बने हैं। स्वयं से अथवा सारे विश्व से आसुरी वृत्तियों को समाप्त करने का काम हमारा है। शक्तियों का ही गायन है ‘असुर संहारिनी’, किन्तु दूसरे तरफ़ शीतला देवी का भी गायन है। तो क्या आज सुबह से हमें भक्तों का आह्वान सुनाई नहीं दे रहा है? भक्त हमें पुकार रहे हैं, चिल्ला रहे हैं ‘ओ माँ, ओ माँ’...। शक्तियों का सदा ब्रह्मचारिणी कन्या रूप ही दिखलाया गया है। आज जब मैं आपके सामने आई तो मैं भक्तों की आवाज़ सुनकर आई थी। मैं प्यारे बाबा के गुण गा रही थी- ओ सर्वशक्तिवान बाबा, आपने हमें कितना गुप्त रूप में रखा है, जिनका आज भक्त गायन कर रहे हैं।


➥ तो आज स्वयं से यही पूछना है- *क्या मैं वही पतित संस्कारों को संहार करने वाली शक्ति हूँ?* शक्तियों को सहस्त्र भुजाधारी दिखलाते हैं, तो क्या हम ऐसी शक्तियाँ हैं? सवेरे योग में यही अनुभव हो रहा था कि हमारे हाथ में ज्ञान के अस्त्र-शस्त्र हैं, स्वदर्शन चक्र है। दैवी गुण रूपी कमल पुष्प है, भिन्न-भिन्न भुजा में भिन्न-भिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं। ये हमारा यादगार है कि हम सदा शस्त्रधारी भुजायें हैं। स्वयं को देखो- *कोई भुजा हिलती-डुलती तो नहीं है ?* बाबा ने हमें अष्ट शक्तियाँ दी हैं। क्या ऐसे कहेंगे कि 6 शक्तियाँ तो हैं और 2 नहीं हैं? हम असुर संहारिनी हैं तो स्वयं में देखो कि हमारे अन्दर आसक्ति रूपी असुर तो नहीं बैठा है? मान-शान रूपी असुर तो नहीं बैठा है? मोह रूपी असुर तो नहीं बैठा है? अगर शक्तियां कहें कि मेरे में छोटा मोटा असुर बैठा है तो क्या उन्हें ‘असुर संहारिनी’ कहेंगे? शक्तियाँ जितनी संहारी हैं उतनी कल्याणी भी हैं। निर्भय, निवैर्र हैं। क्या हमारे अन्दर भय है? क्या हमारा किसी से वैर है? शक्तियों की महिमा में ऐसा नहीं कहा जाता है कि वो भक्तों की वैरी है, नहीं।


➥ शक्तियाँ असुरों की संहारिनी हैं तो भक्तों की रखवाली करने वाली भी हैं। हम सबका उद्धार करने वाली उद्धार-मूर्त शक्तियाँ हैं। तो स्वयं से पूछो मेरे अन्दर सर्व के प्रति स्नेह, सहयोग की भावना रहती है? या किसी के प्रति घृणा की, ईर्ष्या की, नफ़रत की भावना भी रहती है? हमें बाबा से सर्व शक्ति लेकर सबको जीयदान देना है, प्राणदान देना है। बाबा ने हमें कितना महान बनाया है, भक्त हमारी कितनी महिमा करते हैं, आधाकल्प से भक्त हमारा मान-शान-गायन कितना गाते हैं! जब ऐसी ऊँची सीट पर बैठकर अपना यादगार देखते तो बाबा के गुण गाते। जग मेरे मान-शान का गायन करता, मेरे बाबा के साथ मेरा भी गायन है। हमें कहा ही गया है जगत की मातायें, जगत अम्बा, दुर्गा, काली, शक्ति। मैं जगत की माँ हूँ, मेरे लिए सब छोटे बच्चे हैं क्योंकि बाबा कहते हैं- "बिचारों को यही ज्ञान नहीं है कि इनका बाप कौन है!" बिचारे उनको कहा जाता है, जिनको ज्ञान नहीं। बाबा ने हमें त्रिकालदर्शी, महान से महान बनाया है, कितनी ऊँची सीट पर बाबा ने बिठाया है। तो भाषण करने से पहले देखो- मेरी स्टेज ठीक है जो भक्त मेरा साक्षात्कार करें! जब तक हम स्वयं की सीट पर या स्टेज पर नहीं बैठे हैं तब तक हम दूसरों की क्या सेवा करेंगे? अगर सदा मेरी वह स्थिति नहीं है तो भक्त मेरा क्या साक्षात्कार करेंगे?


➥ सबको सर्विस का बहुत शौक रहता है, जोश रहता है। किन्तु क्या सेवा के साथ-साथ स्वयं के स्थिति की सीट भी ठीक हैं? जैसे जीवन में लॉ और लव का बैलेंस बराबर रखते हैं, वैसे सेवा के साथ-साथ स्वयं की स्टेज है? प्लैन बनायेंगे, फिर तन-मन-धन से सर्विस में भी लग जायेंगे, परन्तु कई बार अपनी स्टेज खो बैठेंगे। उसको भाषण करने के लिए कहा, मुझे नहीं कहा, इसे सब चांस देते हैं, मुझे नहीं देते। बड़े का मान रखते हैं, छोटों का नहीं। पता नहीं कितने सवाल सर्विस की स्टेज के साथ उठाते हैं। गये थे स्टेज तैयार करने और अपनी ही स्टेज खराब कर ली। उस समय अपनी स्टेज को तैयार करने का ख्याल नहीं रहता। अरे, तुम अपना रिकार्ड क्यों खराब करते हो? चले थे अनेकों का सुधार करने और अपना ही बिगाड़ कर लिया! तो सदा यह नशा रहे कि हम शेरनी शक्तियाँ हैं। हम ऐसे ऊँचे स्थान पर बैठे हैं। हमारा बाबा कितना महान है, फिर भी कितना निर्मान है।


सदा ये सोचो ➥"हम गॉडली स्टूडेण्ट हैं।" प्रत्येक सब्जेक्ट में हमारा बैलेंस बराबर हो। हमारी चार सब्जेक्ट हैं -

1. ज्ञान

2. योग

3. दैवीगुणों की धारणा और

4. सेवा


✱लेकिन पहले दिखाई देती है सेवा और ज्ञान, बाद में योग और धारणा। इसलिए कभी उदासी के दास बनेंगे, कभी मूड ऑफ के दास बनेंगे।


बाबा ने हमें बनाया है -

1. सहज-योगी

2. ज्ञानी-योगी

3. शीतल-योगी


➥ योगी सदैव हर्षितमुख रहते हैं। हम संगम के देवी-देवतायें हैं, अगर हमारे में अभी धारणा है तो भविष्य में भी रहेगी। देवताई संस्कार हम अभी ही भर रहे हैं। स्वयं से पूछो क्या मेरे अन्दर से आसुरी संस्कार खत्म हो गये हैं या कभी-कभी जोश आ जाता है? हम ‘पतित-पावन’ बाप की सन्तान हैं। स्वयं से पूछो मैं पतित-पावन की सन्तान, क्या मेरे अन्दर कभी पतित संकल्प तो नहीं उठते हैं? किसी पतित आत्मा का वायब्रेशन तो नहीं आता है? मैं असुर संहारिनी हूँ, कहीं असुर मेरा संहार तो नहीं करते? आज की दुनिया में कीचक जैसे लोग बहुत घूमते रहते हैं। लोग जिस बात के पीछे हैं, क्या हम उनसे ऊपर हैं? दुनिया समझती है इस पतित दुनिया में कोई बाल-ब्रह्माचारी बनके दिखावे, प्रकृति में पावन रहकर दिखावे, यह तो बहुत कठिन है।


➥ इसलिए संन्यासी जंगल में चले जाते हैं। प्यारे बाबा ने हम नारियों को आगे बढ़ाया है। औरों ने तो ठुकराया है और बाबा कहते तुम शक्तियाँ स्वर्ग के द्वार खोलने के निमित्त हो। हमारा बहुत बड़ा गुलदस्ता है, अगर इस शक्ति के झुण्ड के बीच कोई भी एक गन्दे वायब्रेशन वाला बैठा हो, तो इस झुण्ड के बीच वो क्या दिखाई देगा? किसी एक के कारण सभी का नाम बदनाम होता है। इसलिए हे शक्तियों! अपने झुण्ड को सदा सेफ़ रखो। ऐसा न हो जो नाम बदनाम हो। कीचक के 20 मुख होते हैं। इसलिए उनसे अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करो। भोली-भाली बनकर नहीं रहना। अच्छा!

*ॐ शान्ति*


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